मैं तुमको विश्वास ढूँ, तुम मुझको विश्वास दो

चेतना गीत-मैं तुमको विश्वास ढूँ, तुम मुझको विश्वास दो

मैं तुमको विश्वास ढूँ, तुम मुझको विश्वास दो
शंकाओं के सागर हम लॅघ जायेंगे
मरुधरा को मिल कर स्वर्ग बनायेंगे

प्रेम बिना यह जीवन तो अनजाना है
सब अपने हैं कौन यहाँ बेगाना है
हर पल अपना अर्थवान हो जायेगा
बस थोड़ा सा मन में प्यार जगाना है
इस जीवन को साज दो
मौन नहीं आवाज दो
पाषाणों में मीठी प्यास जगायेंगे
मरुधरा को मिल कर स्वर्ग बनायेंगे

अलगावों से आग सुलगने लगती है
उपवन की हर शाख झुलसने लगती है
हर आँगन में सिर्फ सिसकियाँ उठती हैं
संबंधों की साँस उखड़ने लगती है
द्वेष भाव को त्याग दो
बस सबको अनुराग दो
सन्नाटों में हम सरगम बन जायेंगे
मरुधरा को मिल कर स्वर्ग बनायेंगे

ढूँढ़ सको तो हर माटी में सोना है
हिम्मत का हथियार नहीं बस खोना है
मुस्का दो तो हर मौसम मस्ताना है
बीत गया जो समय उसे क्या रोना है
लो हाथों में हाथ लो
इक दूजे को साथ दो
इस धरती को सोया प्यार जगायेंगे
मरुधरा को मिल कर स्वर्ग बनायेंगे

.अजीम आजाद