स्काउट सर्वधर्म प्रार्थना सभा कार्यक्रम

स्काउट सर्वधर्म प्रार्थना सभा कार्यक्रम

प्रार्थना क्या है ? तो सहज उत्तर होगा – यह सच्चे और शुद्ध हृदय की करूण पुकार है जो सब अवरोधों को लाँघकर परमात्मा क पहुँचती है। हमारे ‘ईष्ट’ का स्वरूप कैसा ही हो, हमारे ‘आराध्य’ का स्वरूप कैसा ही हो, भले ही हम किसी भी धर्म, सम्प्रदाय और पंथ से जुड़े हुये हैं पर हमारी प्रार्थना उस अनन्त शक्ति, अनन्तरूप, उस विराट रूप के पास ही स्वीकार होती है।

‘प्रार्थना’ का साधारण शब्दों में अर्थ है, “ईश्वर और मनुष्य की पारस्परिक विश्वास भरी बातचीत ।” यह पारस्परिक बातचीत एकात्मकता की ओर संकेत करती है। प्रार्थना में हम ईश्वर से एकात्मकता की ओर हम अपनी सारी बात ईश्वर के समक्ष रख देते हैं। प्रार्थना की उपयोगिता सभी युगों में रही है। सभी धर्मों के ऋषि-मुनि, संत-महात्मा और गुरूओं ने समय-समय पर भगवान के नाम का आश्रय लेकर प्रार्थना तथा प्रभु-नाम-स्मरण की महिमा का प्रतिपादन किया है एवं उपदेश दिया है।

  • प्रार्थना से बुद्धि निर्मल होती है और जब बुद्धि निर्मल होती है तो निर्णय भी अच्छे लिये जाते हैं ।
  • प्रार्थना स्वयं सुख स्वरूपा है और सुख प्रदत्त है अर्थात् सुख प्रदान करती है ।
  • प्रार्थना से शुभ – संस्कारों का जन्म होता है।
  • आत्म-विश्वास और धर्म की नींव है ‘प्रार्थना’ ।
  • प्रभु के समक्ष गलतियों को स्वीकारने का साधन है ‘प्रार्थना’ ।
  • वह समृद्ध बनता है जो अपने आपको शुद्ध बनाता है, प्रभु नाम का स्मरण करता है और प्रार्थना करता है।  
  • प्रार्थना शब्दों से नहीं दिल से होनी चाहिए क्योंकि भगवान, उनकी भी सुनते हैं जो बोल नहीं पाते।
  • प्रार्थना के बिना धर्म और उसके फल को प्राप्त नहीं किया जा सकता है। सही मायने में मन, वचन और कर्म से अपने आप को भगवान को समर्पित करना ही प्रार्थना है।
  • प्रार्थना का उद्देश्य है – तस्मिन प्रीतिः अर्थात् जिससे हम प्रीति करते हैं वह हमारे दोषों को नष्ट कर देते हैं ।
  • प्रार्थना सब कुछ माँगने के लिये नहीं अपितु ईश्वर ने जो कुछ हमें दिया है उसके प्रति आभार व्यक्त करने के लिए होनी चाहिए।

सर्व धर्म प्रार्थना सभा

किसी भी जाति, धर्म या मन्तव्य को मानने वाले विभिन्न धर्मो के अनुयायी बालक व बालिकाएँ (स्काउट व गाइड ) जब मिलजुलकर सेवा कार्य करते हैं, प्रशिक्षण व प्रतियोगिता शिविरों में भाग लेते हैं तो उनके हृदयों में स्वतः ही “सर्वधर्मसमभाव” की भावना पुष्ट होती है। स्काउट व गाइड दलों की सभाओं में, शिविरों में, भोजन वितरण करने से पूर्व और शिविर के समापन के अवसर पर ईश्वर को नमन करते हुये प्रार्थना करते हैं। स्काउट व गाइड द्वारा समय-समय पर अपनी इकाई स्तर पर, जिला, मण्डल, राज्य व राष्ट्र स्तर पर आयोजित शिविरों, रैलियों या अन्य उपयुक्त अवसरों पर तथा प्रशिक्षण शिविर, समागम और जम्बूरी इत्यादि के अन्तिम दिन ‘सर्वधर्म प्रार्थना सभा’ अवश्य ही आयोजित की जाती है। इससे प्रतिभागियों का मानसिक और आध्यात्मिक विकास होता है तथा अन्य नागरिकों को “सर्वधर्म समभाव” का संदेश जाता है ।

‘2 अक्टूबर 1969’ को सम्पूर्ण राष्ट्र जब ‘गाँधी – जन्मशताब्दी वर्ष’ को श्रद्धापूर्वक मना रहा था, इसी समय भारत स्काउट व गाइड ने विभिन्न कार्यक्रमों और अवसरों पर उपयोग के लिये भी “सोलह प्रार्थना गीतों” को अंगीकार किया।

राष्ट्रीय मुख्यालय- भारत स्काउट व गाइड ने इन प्रार्थना भजनों का क्रम निर्धारित किया और इसी के आधार पर सर्वधर्म प्रार्थना सभा आयोजित की जाती है:

(1) प्रातः स्मरामि
(2) सरस्वती वन्दना
(3) गुरु वन्दना
(4) रामधुन – रघुपति राघव …….
(5) नाम धुन… जय बोलो….
( 6 ) व्यक्तिगत आस्था प्रार्थना
(7) मौन प्रार्थना
(8) व्ही शैल ओवर कम (हम होंगे कामयाब )
(9) भजन – हर देश में तू.
(10) शान्ति पाठ ।

क्रम सं.6 पर व्यक्तिगत आस्था प्रार्थना में विभिन्न धर्मों की प्रार्थनाएँ अंग्रेजी वर्णमाला के क्रमानुसार करनी होती है। सर्वधर्म प्रार्थना सभा में उसी धर्म की प्रार्थना की जाती है जिस धर्म को मानने वाला वहाँ स्वयं उपस्थित हो। इसके लिये अधिकतम तीन मिनट का समय निर्धारित किया गया है। प्रार्थना वाचन करने वाले के अतिरिक्त सभा में उपस्थित शेष जन-समूह शांत बैठा रहता

‘सर्व-धर्म-प्रार्थना सभा की प्रस्तुति अपने आप में अनूठी है; एक योजक कड़ी है। यह स्काउट व गाइड संगठन की एक ऐसी गतिविधि है जो अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सद्भावना, राष्ट्रीय एकता व भावात्मक सामंजस्य को बढ़ाती है और विभिन्न सम्प्रदायों और वर्गों के मध्य सहज और सौहार्दय भाव पनपाती है।

“सर्व-धर्म-प्रार्थना-सभा” का अपना एक विशेष स्थान है। अतः इस कार्यक्रम का संचालन श्रद्धा व गरिमापूर्वक किया जाना चाहिए। सर्वधर्म प्रार्थना सभा में निर्धारित समय पर एकत्रित हो, वातावरण को प्रभावशाली बनाने के लिए शान्ति बनाये रखनी चाहिए। किसी भी धर्म से सम्बंधित तस्वीर नहीं लगानी चाहिए। निर्धारित कार्यक्रमानुसार ही प्रार्थनाओं और भजनों का वाचन किया जाना चाहिए। यथासंभव प्रार्थना सभा में क्षेत्र के विशिष्ट नागरिकों तथा स्”सर्व-धर्म-प्रार्थना-सभा” का अपना एक विशेष स्थान है। अतः इस कार्यक्रम का संचालन श्रद्धा व गरिमापूर्वक किया जाना चाहिए। सर्वधर्म प्रार्थना सभा में निर्धारित समय पर एकत्रित हो, वातावरण को प्रभावशाली बनाने के लिए शान्ति बनाये रखनी चाहिए। किसी भी धर्म से सम्बंधित तस्वीर नहीं लगानी चाहिए। निर्धारित कार्यक्रमानुसार ही प्रार्थनाओं और भजनों का वाचन किया जाना चाहिए। यथासंभव प्रार्थना सभा में क्षेत्र के विशिष्ट नागरिकों तथा स्थानीय समुदाय के नागरिकों को भी आमन्त्रित किया जाना चाहिए। सर्वधर्म प्रार्थना सभा कार्यक्रम सादगीपूर्ण हो; अधिक औपचारिकताएँ लिये हुये ना हों ।

सर्वधर्म प्रार्थना सभा कार्यक्रम

  1. प्रातः स्मरामि ।
  2. सरस्वती वन्दना ।
  3. गुरू वन्दना ।
  4. रामधुन – रघुपति राघव राजा राम (केवल पहला अंतरा )
  5. नामधुन – जय बोलो सत् धर्मों की
  6. व्यक्तिगत आस्था प्रार्थना । (विभिन्न धर्मों की प्रार्थना अंग्रेजी वर्णमाला क्रमानुसार, यथा बौद्ध धर्म, किश्चियन धर्म, इस्लाम धर्म, जैन धर्म ) सनातन धर्म, सिक्ख धर्म
  7. मौन प्रार्थना ( एक मिनट ) 8. व्ही शैल ओवर कम….. (हम होंगे कामयाब ……..)
  8. भजन- हर देश में तू
  9. शान्ति पाठ

प्रातः स्मरामि

प्रातः स्मरामि हृदि संस्फुरदात्मतत्त्वं,
सच्चित्सुखं परमहंसगतिं तुरीयम् ।
यत्स्वप्नजागर- सुषुप्तमवैति नित्यं,
तद्- ब्रह्म निष्कलमहं न च भूतसंघः ।।
प्रातर्भजामि मनसो वचसामगम्यं,
वाचो विभान्ति निखिला यदनुग्रहेण ।
यन्नेति नेति वचनैर्निगमा अवोचं,
स्तं देवदेवमजमच्युतमाहुरग्रयम् ॥
प्रातर्नमामि तमसः परमर्कवर्ण,
पूर्ण सनातनपदं पुरूषोत्तमाख्यम् ।
यस्मिन्निदं जगदशेषमशेषमूर्ती,
रज्जवां भुजंगम् इव प्रतिभासितं वै ।।

सरस्वती – वन्दना

या कुन्देदुं – तुषार-हार धवला या शुभ्र वस्त्रावृता ।
या वीणा वर- दण्ड-मण्डितकरा या श्वेत पद्मासना।
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर् देवै सदा वन्दिता ।
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ।।

(प्रातः स्मरामि – प्रातः काल मैं अपने हृदय में स्फुरित होने वाले आत्म-तत्व का स्मरण करता हूँ, जो आत्मा सच्चिदानन्द सत्ता, ज्ञान और सुखमय है, जो परमहंसों की अन्तिम गति है, जो जागृत – स्वप्न सुषुप्तिरूप तीनों जागतिक अवस्थाओं से परे हैं, जो जागृत, स्वप्न और निद्रा – तीनों अवस्थाओं को नित्य जानता है। वह शुद्ध ब्रह्म ही मैं हूँ- पंचमहाभूतों से बनी हुई यह देह में कदापि नहीं हूँ ।

जो मन और वाणी का विषय नहीं है, जिसकी कृपा से परा, यश्यन्ती, मध्यमा और बैखरी रूप चारों तरह की वाणी प्रकट होती है, वेद भी जिसका वर्णन “वह यह नहीं, कह कर निषेध रूप से ही कर सके हैं, उस ब्रह्म का प्रातः काल उठकर मैं भजन करता हूँ। ऋषियों ने उसे देवों का भी पूज्य, अजन्मा, पतन रहित और सबका आदि कहा है।”

मैं प्रातःकाल उठकर उस सनातन पद को नमन करता हूँ, जो अन्धकार से परे है, सूर्य के समान तेजोमय है, पूर्ण पुरूषोत्तम नाम को पहचाना जाता है और जिसके अनन्त स्वरूप के भीतर यह सारा जगत उसी तरह दिखाई देता है जिस तरह रस्सी में साँप।)

गुरु वन्दना

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः ।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ।।
(गुरू हौ ब्रह्मा है, गुरू ही विष्णु है, गुरू ही महादेव है, गुरू ही साक्षात् परब्रह्म है; उन श्री गुरू को मैं नमस्कार करता हूँ । )

राम धुन

रघुपति राघव राजाराम, पतित पावन सीताराम ।
सीताराम सीताराम, भज प्यारे तू सीताराम ।।
ईश्वर, अल्लाह तेरे नाम, सबको सन्मति दे भगवान ।। रघुपति……
वेद पढ़ो चाहे पढ़ो कुरू-आन, इन दोनों में तेरा नाम ।। रघुपति……
मन्दिर, मस्जिद तेरे धाम, सबमें बसते श्री भगवान ।। रघुपति……

नाम धुन

जय बोलो सत् धर्मो की, जय बोलो सत् कर्मों की ।
जय बोलो मानवता की, जय बोलो सब जनता की ॥
पिछड़ी कोई न जाति हो, सबसे सबकी प्रीति हो ।
देश धर्म से नीति हो, हम सत् के ही साथी हों ।।
हम सब कष्ट उठायेंगे, सब मिलकर सुख पायेंगे ।
सब मिल प्रभु – गुण गायेंगे, सत का जस फैलायेंगे ।।
जय बोलो सत् धर्मो की, जय बोलो सत् कर्मों की ।
जय बोलो मानवता की, जय बोलो सब जनता की ।।

व्यक्तिगत आस्था प्रार्थना

व्यक्तिगत आस्था प्रार्थना:- ( इन्डिविजुवल फेथ प्रेयर),
अंग्रेजी वर्णमाला क्रम (अलफाबैटिकली) के अनुसार

(सरस्वती वन्दना – माँ सरस्वती, जो कुन्द पुष्प के समान, चन्द्रमा के समान और बर्फ की माला के समान सफेद वर्ण वाली है, जो सफेद वस्त्रों से आवृत है, जिसके हाथ वीणा के श्रेष्ठ दण्ड से सुशोभित हैं, जो सफेद कमल पर आसीन है, ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश आदि देव सदैव जिसकी स्तुति करते हैं, वही बुद्धि की सारी जड़ता और अज्ञानता का नाश करने वाली है, माँ सरस्वती मेरी रक्षा करें।)

प्रार्थना – बौद्ध धर्म

नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मासम्बुद्धस्स ।
नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मासम्बुद्धस्स ।
नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मासम्बुद्धस्स ।
बुद्धं सरणं गच्छामि |
धम्मंसरणं गच्छामि ।
संघं सरणं गच्छामि ।
दुतियम्पि बुद्धं सरणं गच्छामि ।
दुतियम्पि धम्मं सरणं गच्छामि ।
दुतियम्पि संघं सरणं गच्छामि ।
ततीयम्पि बुद्धं सरणं गच्छामि ।
ततीयम्पि धम्मं सरणं गच्छामि ।
ततीयम्पि संघं सरणं गच्छामि ।
पाणातिपाता वेरमणी सिक्खापदम् समादियामि |
अदिन्नादाना वेरमणी सिक्खापदम् समादियामि ।
कामेसु मिच्छाचारा वेरमणी सिक्खापदम् समादियामि ।
मुसावादा वेरमणी सिक्खापदम् समादियामि ।
सुरा – मेरय-मज्जा – पमाद्वाना वेरमणी सिक्खापदम् समादियामि ।

(पूर्णप्रज्ञ, अर्हन्, भगवान (बुद्ध) को नमस्कार है। पूर्णप्रज्ञ, अर्हन्, भगवान (बुद्ध) को नमस्कार है। पूर्णप्रज्ञ, अर्हन्, भगवान (बुद्ध) को नमस्कार है। मैं बुद्ध की शरण में जाता हूँ, धर्म के शरणापन्न होता हूँ, भिक्षु संघ की शरण में जाता हूँ, द्वितीय बार मैं बुद्ध के शरणापन्न होता हूँ, धर्म की शरण में जाता हूँ, संघ की शरण में जाता हूँ। तीसरी बार मैं बुद्ध के शरणापन्न होता हूँ, धर्म की शरण में जाता हूँ, संघ की शरण में जाता हूँ। मैं जीव की हिंसा न करने की प्रतिज्ञा करता हूँ। मैं उस वस्तु के न लेने की प्रतिज्ञा करता हूँ, जो मुझे न दी गयी हो । भोगों में मिध्याचरण न करने की मैं प्रतिज्ञा करता हूँ । असत्य वचन से बचने की मैं प्रतिज्ञा करता हूँ। मैं सुरा-मद्यादि मादक वस्तुओं से बचने की प्रतिज्ञा करता हूँ ।)

प्रार्थना- क्रिश्चियन धर्म

(बाइबिल से प्रभु यीशु मसीह की प्रार्थना ) “हे हमारे पिता ! तू जो स्वर्ग में है, तेरा नाम पवित्र माना जाए, तेरा राज्य आये, तेरी इच्छा जैसी स्वर्ग में पूरी होती है, वैसी पृथ्वी पर भी हो। हमारे दिन भर की रोटी आज हमें दो और जैसे हमने अपने अपराधियों को क्षमा किया है, वैसे ही हमारे अपराधों को क्षमा कर और हमें परीक्षा में न ला बल्कि बुराई से बचा ! क्योंकि राज्य और पराक्रम और महिमा सदा तेरी ही है। ” आमीन!

मसीह भजन

परम पिता की हम स्तुति गाएँ, वो ही है जो बचाता हमें ।
सारे पापों को करता क्षमा, सारे रोगों को करता चंगा ।।
धन्यवाद दें उसके आसनों में, आनन्द से आए उसके चरणों में ।
संगीत गाकर खुशी से मुक्ति की चट्टान को जय ललकारें ।।
वो ही हमारा है परम पिता, तरस खाता है सर्व सदा ।
पूरब से पश्चिम है जितनी दूर उतनी ही दूर किए हमारे गुनाह ।।
माँ की तरह उसने दी तसल्ली, दुनिया के खतरों में छोड़ा नहीं ।
खालिस दूध है कलाम का दिया, और दी हमेशा की जिन्दगी ।।
चरवाहे की मानिन्द ढूँढा उसने, पापों की कीच से निकाला हमें ।
हमको बचाने को जान अपनी दी, ताकि हाथ में हम उसके रहें ।।
घौंसले को बार-बार तोड़कर उसने, चाहा कि सीखें हम उड़ना उससे ।
परों पर उठाया उकाब की तरह, ताकि हमको चोट न लगे ।।

प्रार्थना-इस्लाम धर्म

( पनाह )
अऊ बिल्लाहि मिनश् शैत्वानिर् रजीन् ।
( अल फातिहा )
बिसमिल्लाहिर रहमा निर रहीम ।
अलहम्दु लिल्लाह रब्बिल आलमीन ।
अन रह मानिर रहीम, मालिक यौमिद दीन ।
ईयाक ना अबुदु वा इयाका नस्ताईन ।
इह दिनस सिरातल मुस्तकीम ।
सिरातल लजीना अन अमता अलैहिम ।
गैरिल मगदूबी अलैहिम व लब्दो आलीन ।
आमीन।
(सूरत – ए – इखिलास )
बिस्मिल्लाहिर्रह् मानिर रहीम |
कुल हुवल्लाहु आहद! अल्लाहुस्समद् !
लालिद वलम् यूलद ! व लम्यकुल्लहु कुफवन आहद!!

प्रार्थना – जैन धर्म

अरिहंत नमो भगवंत नमो, परमेश्वर जिनराज नमो ।
प्रथम जिनेश्वर प्रेमे पेखत, सिद्धं सघला काज नमो ॥
प्रभु पारंगत परम महोदय, अविनाशी अकलंक नमो ।
अजर-अमर अद्भुत अतिशय निधि, प्रवचन जलधि मयंक नमो ॥
सिद्ध-बुद्ध तूं जगजन, सज्जन- नयनानन्दन देव नमो ।
सकल सुरासुर नरवर नायक सारअहो, निश सेव नमो ॥
तूं तीर्थंकर सुखकर साहिब, तूं निःकारण बन्धु नमो ।
शरणागत भविने हितवत्सल, तुही कृपारस सिन्धु नमो ॥
केवल ज्ञानादर्शे दर्शित लोकालोक स्वभाव नमो ।
नाशित सकल कलंक कलुषगण दुरित उपद्रव भाव नमो ॥
घोर अपार भवोदधि-तारण, तूं शिवपुरणो साथ नमो ।
अशरण-शरण निराग निरंजन, निरुपाधिक जगदीश नमो ।
बोध दीनूं अनुपम दानेसर, ज्ञान- विमल सुर ईश नमो ॥

णमोकार मंत्र

ॐ णमो अरिहंताणं, ॐ णमो सिद्धाणं, ॐ णमो आइरियाणं ।
ॐ णमो उवज्झायाणं, ॐ णमो लोए सव्वसाहुणं ।
ऐसो पंच णमोकारो- सव्वे पाप-प्पणासणी,
मंगलाणं च सव्वेसिं, पढ़म होई मंगलं ।।

पार्श्वनाथ स्तुति

तुमसे लागी लगन, ले लो अपनी शरण पारस प्यारा ।
मेटो मेटो जी संकट हमारा ।।
निशदिन तुमको जपूँ, पर से नेहा तजूँ, जीवन सारा ।
तेरे चरणों में बीते हमारा, मेटो मेटो जी संकट हमारा ।।
अश्वसेन के राज दुलारे, वामा देवी के सुत-प्राण प्यारे
सबसे नेहा तोड़ा, जग से मुँह को मोड़ा, संयम धारा ।। मेटो… ।
इन्द्र और धरनेन्द्र भी आये, देवी पद्मावती मंगल गाये
आशा पूरो सदा, दुःख नहीं पावे कदा, सेवक थारा ।। मेटो… ।
जग के दुःख की तो परवाह नहीं है, स्वर्ग सुख की भी चाह नहीं है ।
मेटो जामन-मरण होवे ऐसा जतन, पारस प्यारा ।।
मेटो लाखों बार तुम्हे शीश नवाऊँ, जग के नाथ तुम्हें कैसे पाऊँ ।
‘पंकज’ व्याकुल भया, दर्शन बिन ये जिया, लागे खारा ।। मेटो.. ।

प्रार्थना – सनातन धर्म


वैदिक प्रार्थना

आ ब्रह्मन ब्राह्मणों ब्रह्मवर्चसी जायतामा राष्ट्रे राजन्यः शूर
हषव्योऽतिव्याधी महारथोजायतां दोग्ध्री धेनुर्षोढानवानाशुः
सप्तिः पुरन्धिर्योषा जिष्णु रथेष्ठाः समेयो युवास्य यजमानस्य
वीरो जायतां निकामे निकामे नः पर्जन्यो वर्षतु फलवत्यो न
ओषधयः पच्यन्तां योगक्षेमो नः कल्पताम। (शुक्ल यजुर्वेद 22 / 22)

श्री राम स्तुति

श्री रामचन्द्र कृपालु भजुमन, हरण भवभय दारुणं ।
नवकंज लोचन, कंजमुख, कर-कंज पद कंजारूणं ।।
कंदर्प अगणित अमित छवि, नवनीलनीरद सुंदरं ।
पट पीत मानहु तड़ित रुचि शुचि, नौमि जनक सुतावरं ।।
भजु दीनबंधु दिनेश दानव-दैत्य वंश-निकं-दनं ।
रघुनंद आनंद कंद कौशलचंद, दशरथ- नंदनं ।।
सिर मुकुट कुंडल तिलक चारू उदारू अंग विभूषणं ।
आजानुभुज शर-चाप-धर, संग्राम-जित- खरदूषणं ।।
इति वदति तुलसीदास शंकर-शेष-मुनि-मन-रंजनं ।
मम हृदय कंज निवास कुरू, कामादि- खल-दल- गंजनं ।।
मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर साँवरो।
करूणा निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो ।।
एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय सहित हिय हरषीं अली ।
तुलसी भवानिहि पूजि पुनि-पुनि, मुदित मन मंदिर चली।
सो.- जानि गौरि अनुकूल, सिय हिय हरषु न जाइ कहि।
मंजुल मंगल मूल, बाम अंग फरकन लगे ।।

प्रार्थना-सिक्ख धर्म

एक औं सतनाम कर्त्तापुरूष निर्मउ निर्वैर
अकाल मूरत अजूनी सैभं गुरू प्रसाद जप |
आदि सच, जुगादि सच, है भी सच,
नानक होसी भी सच || वाहे गुरु ||

अरदास

तू ठाकुर तुम पहि अरदास, जीऊ पिण्ड सब तेरी रास ।।
तुम मात-पिता हम बारिक तेरे, तुमरी कृपा महँ सूख घनेरे । ।
कोई न जाने तुमरा अन्त । ऊँचे ते ऊँचा भगवन्त ।।
सगल सामग्री तुमरे सूत्रधारी । तुमते होय सो अगियाकारी ।।
तुमरी गति-मित तुम ही जानी। ‘नानक’ दास सदा कुर्बानी ।।