हर देश में तू, हर भेष में तू तेरे नाम अनेक तू एक ही है

हर देश में तू, हर भेष में तू, तेरे नाम अनेक तू एक ही है।

तेरी रंगभूमि यह विश्व भरा, सब खेल में मेल में, तू ही तू है ।।

सागर से उठा बादल बन के, बादल से फुटा जल हो करके ।

फिर नहर बना नदिया गहरी, तेरे भिन्न प्रकार तू एक ही है ।।

चींटी से भी अणु परमाणु बना, सब जीव जगत का रूप लिया।

कहीं पर्वत वृक्ष विशाल बना, सौन्दर्य तेरा, तू एक ही है ।।

यह दिव्य दिखाया है जिसने, वह है गुरूदेव की पूर्ण दया ।

‘टुकड्या’ कहे और न कोई दिखा, बस मैं और तू सब एक ही हैं ।।

हर देश में तू, हर भेष में तू तेरे नाम अनेक तू एक ही है